द्वितीय अध्याय – त्रिदेवो की उत्त्पत्ति

सृष्टि की रचना करने के लिए सबसे पहला कार्य था त्रिदेवो की उत्त्पति

सबसे पहले भगवान विष्णु प्रकट हुए और उनके नाभि कमल से भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए। ये प्रथम ब्रह्मा थे जो भगवान विष्णु से प्रकट हुए। प्रकट होने के बाद, जब दोनों ने एक दूसरे को ढूंढ लिया तो दोनों एक दूसरे से ही प्रश्न करने लगे की:

  • हमारा जन्म कैसे हुआ है ?
  • हमारे जीवन का क्या उद्देश्य है ?

सहसा उन दोनों के बीच एक दिव्य अग्नि स्तम्भ प्रकट हुआ और आकाश वाणी हुई:

 

आप दोनों मुझ सदाशिव (शिव का अर्थ होता है कल्याण, मंगल, शुभ, मांगलिक, भाग्यवान्) की सृष्टि कामना से उत्पन्न हुए हैं। मैं ही आपका जन्मदाता हूँ। अपने समस्त प्रश्नो का उत्तर जानने के लिए मेरे इस दिव्य अग्नि स्तम्भ स्वरुप के आदि और अंत को ढूंढो। मेरे इस स्वरुप में प्रवेश करो और मेरे ओर छोर का पता लगाओ।

भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा, दोनों युगो युगो तक उस दिव्य अग्नि स्तम्भ के आदि और अंत को ढूंढने का प्रयास करते रहे परन्तु बहुत प्रयास के बाद भी वे उस दिव्य अग्नि स्तम्भ के आदि और अंत का पता नहीं लगा सकें। अंतत: उन्होंने दिव्य ज्योति स्वरुप भगवन सदा शिव से प्रार्थना करी की ‘हे भगवान सदाशिव, हम आपका आदि और अंत ढूंढने में असमर्थ हैं। कृपा करके आप हमें अपने स्वरुप का ज्ञान कराइये।

 

इस पर भगवान सदाशिव ने कहा की:
हे श्री हरी विष्णु और श्री ब्रह्मा, मुझसे ही उत्पन्न आप दोनों अभी तक मेरे स्वरुप से अनभिज्ञ हैं। मेरी ज्योति में पहुंच कर भी आपके अंदर का अंधकार दूर नहीं हुआ है। अपने इस अंधकार को मिटने के लिए और मेरे इस स्वरुप का ज्ञान पाने के लिए आप दोनों तप कीजिये। तप ही समस्त कार्यो का साधन है। तप करने से आपकी द्रिष्टी निर्मल होगी और तब मैं साक्षात् प्रकट होकर आपका मार्ग दर्शन करूंगा।

इस पर भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा तपस्या में लीन हो गये और निरंतर ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करने लगे। जब उनकी तपस्या पूर्ण हुई तब भगवान सदाशिव ने अपने अर्धनारीश्वर स्वरुप में उन्हें दर्शन दिए और कहा:

हम हैं अर्ध नारीश्वर, शिव और शक्ति का अभिन्न रूप। जिस ज्योति स्वरुप का आप दोनों युगो युगो तक अनुसन्धान करते रहे, मैं वही हूँ और अर्धनारीश्वर रूप मैं आपके सम्मुख प्रकट हुआ हूँ। शिव और शक्ति एक दूसरे में समाये हुए हैं। शिव मैं ही शक्ति है और शक्ति मैं ही शिव है।

आप दोनों हमारी सृष्टि कामना से उत्पन्न हुए हैं इसलिए आप दोनों सृष्टि रचना और सृष्टि पालन का कार्य करेंगे।

श्री ब्रह्मा जी: हमने जिन पांच भूतो का निर्माण किया है उससे आप सृष्टि का निर्माण करेंगे।

और श्री हरी विष्णु जी: श्री ब्रह्मा जी जिस सृष्टि का सृजन करेंगे उसका आप पालन करेंगे।

श्री विष्णु सदा सदा के लिए अपने इस रूप में प्रकट रहेंगे और इसी प्रकार अपने नाभि कमल से, समय समय पर नए ब्रह्मदेव को प्रकट करते रहेंगे । हर ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष की होगी। उनका 1 दिन 1 कल्प (1000 चतुर्युग) कहलायेगा। हर कल्प की शुरुआत में 1 नए ब्रह्माण्ड अर्थात 1 नई सृष्टि की रचना होगी और कल्प के अंत में वह जल कर भस्म होजायेगी। राख बनकर ये वापस मुझमे ही समा जायेगी। में ही इस सृष्टि का संघार करूंगा।

 

 

सृष्टि की रचना होने के बाद मैं अपने शिव रूप में प्रकट होकर कैलाश पर वास करूंगा जो की इस संपूर्ण संसार का केंद्र होगा।
मैं हर ब्रह्माण्ड के मध्य में अपने इसी शिव रूप में प्रकट होकर उस सृष्टि का आधार रखूंगा। परन्तु मेरी पूजा हमेशा मेरे मूल रूप अर्थात मेरे निर्गुण और निराकार सदा शिव स्वरुप में होगी जो की ‘शिव लिंग’ कहलायेगा।
( लिंग 1 संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है प्रतीक, ये लिंग इश्वर के निराकार रूप का प्रतीक है)

स्वयं शिव का कथन है
ममैस हृदये विष्णुर्तिणजोश्च हृदय हयम।
उमयोरन्तर यो वेन जानाति मतो मम:।
अर्थात: शिवलिंग वही ज्योतिर्लिंग है जिसका कोई आकार नहीं है तथा आदि-अंत अनंत है। उसी अनंत शक्ति की पूजा शिवलिंग के रूप में अद्यतन श्रद्धा से की जा रही है।

 

आप दोनों अपने अपने लोको में अपना स्थान लो।
हमारे बनाये इस संसार में हम तीनो त्रिदेव कहलायेंगे और हमारा एक अलग स्थान होगा।
हम तीनो इस संसार में समकक्ष होंगे।

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