सबसे पहले यह समझते हैं की “क्यों” हुई:
जब परमब्रह्म परमेश्वर की एक से अनेक होकर लीला रचने की इच्छा हुई तब इस संसार की रचना हुई।
इसका अर्थ ये है पहले न तो matter था, न energy थी, न ही space या vacuum था, न ही time था, न जीवन था न ही मृत्यु थी, संक्षिप्त में कहू तो कुछ भी नहीं था, सिर्फ परमब्रह्म परमेश्वर थे।
परमेश्वर का न ही कोई आकार है, न ही कोई आदि है और न ही कोई अंत है। परमेश्वर क्या है और क्या नहीं है यह समझना और समझाना असम्भव है।
परमेश्वर ने यह तय किया की जब मैं एक से अनेक हो जाऊंगा तो फिर उस पृथक हुए तत्त्व का उद्देश्य होगा – वापस मुझमे ही आकर समाहित होना। इसी स्थिति को मोक्ष कहते हैं। इसी भाव से प्रेरित होकर ईश्वर ने इस संसार की अर्थात इस सृष्टि की रचना करी।
अब अगर हमारे मन में यह प्रश्न है की एक से अनेक होने की इच्छा ही क्यों हुई ? इस सवाल का जवाब सिर्फ वही ज्ञानी दे सकता है जिसे समस्त वेदो और पुराणों का ज्ञान हो।
अब यह समझते हैं की “कैसे” हुई:
परमेश्वर अर्थात ईश्वर ने सर्वप्रथम इस संपूर्ण संसार की कल्पना करी, यानि के:
- इसके समस्त जीव जन्तुओ की, पेड़ पौधो की, सुक्ष्म जीवो की
- ब्रह्माण्ड की, Multiverse की
- भावो की, विचारो की
- हर तत्त्व की, ऊर्जा की
- त्रिदेवो की
- सारे नियमो की